ब्रेकिंग न्यूज


मूलतः हिमालयी समाज प्रकृति पूजक रहा है। प्रकृति के सभी घटको के साथ समन्वय का संदेश देते लोक पर्वो का महत्व समय के साथ कम जरूर हुआ है लेकिन इनकी तासीर आज भी ताजा लगती है। मार्च यानी चैत का महीने में भिटोली शुरू हो जाती है। शादी शुदा बेटियों को मायके से उपहार और पकवान दिये जाते हैं। बच्चे घर-घर जाकर आंगन में प्योली, मिझोई, बुरांश और सरसों के फूल बिखरते हुए घर आंगन, खेती किसानी के लिए दुआ मांगते हैं और गाते हैं फूल देई छम्मा देई जदुगै दि छैं उदुगे सही, दैणी द्वार भर भकार। बदले में बच्चों को चावल, गुण, मिठाई और भेंट दी जाती है। घरों से एकत्र चावल और गुण का पकवान रात को बनाया जाता है जिसे साई कहा जाता है। प्रकृति के साथ सहजीवन का प्रतीक है लोक पर्व लोक जीवन में लोक पर्वो का विशेष महत्व आज भी कायम है। बच्चों को स्कूल भी जाना होता है इसलिए वे सुबह जल्दी उठकर तैयारी करने में जुटे रहते हैं। फूलदेई से एक दिन पहले गाॅव के आसपास गेहॅू के फूल इक्ट्ठा करना और जंगल से बुरांश के चटक लाल फूलों को तोड़ना। जिसकी थाली में जितने फूल उसका उत्साह उतना बड़ा। और गाॅव के प्रत्येक आंगन में बच्चों की चहल-पहल और रंग बिरंगे फूलों की बरसात नजारा देखने लायक होता है। छोटे बच्चों के अभिभावक उनको गोद में उठाकर घर-घर दुआ देने और फूल चढ़ाने जाते हैं। पहली फूल देई मना रहे बच्चों को दक्षिणा और मिठाई देने की परंपरा भी है।
पारंपरिक दंत कथाओं में फूलदेई की कहानी भी पहाड़ में प्रचलित है। फूलदेई के अवसर पर एक विशेष पीले फूल का प्रयोग किया जाता है। जिसे प्योली का फूल कहते हैं। यह फूल पहाड़ों में बसंत के मौसम में खिलता है। इस पर एक लोककथा प्रचलित है। कहते हैं हिमालय के पहाड़ों में एक राजकुमारी रहती थी। जिसका नाम प्योली था। उसको एक दूसरे देश के राजकुमार से प्रेम हो गया था। वह राजकुमार उसे शादी करके अपने देश ले गया। उसके जाते ही पहाड़ के पेड़ पौधे मुरझाने लगे। पंछी उदास रहने लगे। क्योंकि वो पहाड़ में सबकी लाडली राजकुमारी थी। उधर प्योंली की सास भी उसे अपने मायके वालों से मिलने नहीं आने देती थी। जिस कारण प्योंली उदास रहने लगी। उदास रहते रहते वो बीमार हो गई। एक दिन प्योली बीमारी से मर गई। प्योली को उससे ससुरालियों ने पास में ही जंगल में दफना दिया। कुछ समय बाद जिस स्थान पर प्योली को दफनाया था वहां एक पीला फूल उग गया, जिसका नाम प्योली के नाम पर रख दिया गया। और उस दिन से प्योली की याद में फूलदेई त्यौहार मनाया जाने लगा।



Loading

Leave comment

Your email address will not be published. Required fields are marked with *.