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विपिन जोशी , बागेश्वर
2024 लोक सभा चुनावों की तिथि घोषित होने वाली हैं। आचार संहिता लगने ही वाली है। केन्द्र में सत्ता कायम रखने के कयास और प्रयास सत्ता धारी दल हमेशा करता है। या कहेें कि सत्ता धारी दल हमेशा चुनावी मोड में रहता है तो अतिश्योक्ति न होगी। पिछले एक दशक के तथ्य देखें तो देश में बेरोजगारी, अशिक्षा, बाल कुपोषण, महिला सुरक्षा तथा स्वास्थय सेवाओं की स्थिति लगातार खराब होती दिखती हैं। देश के आगे मुख्य धारा मीडिया के माध्यम से अजीबों गरीब किस्म की धारणाएं गढ़ने का काम दिन रात जारी है। सरकार ने जनता के टैक्स का पैसा विकास कार्यो में कम और अपने प्रचार प्रसार में अधिक किया है। बहुमत का लाभ लेते हुए इलैक्टा्रेरल बाॅण्ड जैसी स्कीम जारी की जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अवैध घोषित किया है और अब सरकार चुनावी चंदे की जानकारी देने में हील हवाली कर रही है इस खेल में एसबीआई सरकार की ओर से तैनात है हालिया खबरों के मुताबिक अब एसबीआई पर भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना का केस दायर कर दिया गया है। ये है सरकार का प्रथम रिपोर्ट कार्ड जिसमें आम आदमी की फ्री राशन और किसान निधि के अलावा कुछ खास नहीं मिला। रोजगार के नाम पर अग्निीवीर मिला तो कर्मचारी हितों के नाम पर नई पेंशन स्कीम। इसके अलावा सरकार तमाम मोर्चो पर विफल साबित हुई है। यदि सच में अमृत काल चल रहा होता तो अभी तक मनिपुर क्यों जल रहा होता ? किसान आंदोलन फिर से क्यों मुखर हो गया ? महिला ऐथलीटों पर अत्याचार करने वाला नेता अब तक क्यों गिरफतार नहीं हुआ ? यूपी सहित अन्य राज्यों में पेपर लीक के मामलों पर सरकार क्यों खामोश है ? उत्तराखण्ड की बेटी अंकिता जो शायद प्रधान मंत्री जी के परिवार की ही सदस्या थी उसे इंसाफ क्यों नहीं मिल रहा है ? अंकिता केस को सार्वजनिक करने वाले पत्रकार को ही जेल में क्यों डाला गया है ? विकास के नाम पर सड़क चैड़ीकरण के नाम पर गंगोत्री हाईवे में हजारों देवरार के वृक्ष क्यों काट दिये गये ? अब विकास के अंधे खेल में कुमाॅउ के प्रसिद्ध जागेश्वर धाम में देवदार के वृक्षों पर विभाग की मुनाफेपरक निगाहें क्यों अटक गई हैं ? क्यों विभिन्न सामाजिक संगठन आज महाशिव रात्रि के पावन पर्व पर देवरार के वृक्षों को बचाने के लिए एक जुट हो रहे हैं ?
और भी कई सवाल हैं जो अमृतकाल के सच को उजागर करते हुए देश के बड़े और छोटे मुद्दों को रेखांकित करते हैं ? लेकिन सत्ता की हनक के आगे सवालों को बड़े व्यवस्थित तरीके से किनारे लगाया जा रहा है। सरकारी ऐंजेंसियों को मोटे मुनाफे के लिए कारपोरेट सैक्टर को सौंप देना और आगामी वर्षो में शिक्षा जैसे बड़े विभाग को भी कारपोरेट घरानो को सौंपने की तैयारियां किसी से छुपी नहीं है। बहुत ही शालीन तरीके से कारपोरेट घराने सरकार के साथ मिलकर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे महकमों पर भी कब्जा करने की रणनीति पर खेल शुरू कर चुकी हैं। ऐसे में कहां से सरकारी नौकरियां बनेंगी। कंपनी राज होगा और कंपनी राज में नौकरियां हमेशा सेठ और मैनेजरों की मेहरबानियों पर चला करती हैं। तो आने वाला समय और अधिक मात्रा में बेराजगारी और तानाशाही का दौर लेकर आयेगा इतना तो तय है।
इसलिए जागरूक नागरिकों और वोटरों की जिम्मेदारी है कि वे वोट देने से पहले रंग बिरंगे पोस्टरों, आईटी सेल के भ्रामक विज्ञापनों और चुनावी जुमलों से बचते हुए अपने नेता से पूछे कि क्या हुआ रोजगार का ? गुणवत्ता परक शिक्षा का ? क्यों नहीं है अस्पतालों में डाॅक्टर और दवाएं ? सड़कों की हालत क्यों नहीं सुधरी ? नदियों पहाड़ों को क्यों सौंप दिया गया है माफियाओं को ? क्या सरकारें सिर्फ राजस्व उगाही के लिए बनी हैं ? पांच किलों मुफ्त राशन ही सब सवालों का हल है क्या ? सरकार आम जनता को काबिल बनाने में मदद करें। शिक्षा और रोजगार को बढ़ावा दे तो मुफ्त योजनाओं की क्या आवश्यकता है ? किसानों की आय दोगुनी करने का वादा करने वाली सत्ता किसानों पर गोलियां दागती हैं, उनको अहिंसक आंदोलन की इजाजत नहीं देती है, किसानों की राह में कीलें बिछाई जाती है आखिर ये सब इसी अमृतकाल में हो रहा है। हम सब इस तरह के नजारे रोज देख रहे हैं। मुख्य धारा मीडिया भले ही सत्य पर सरकारी पर्दा डालते रहे लेकिन शोशल मीडिया प्लेट फाॅर्म तो सत्य को सामने ला ही रहा है। इस बात की पूरी संभावना है कि सरकार आने वाले कुछ महीनों में बा्रडकास्टिंग बिल ले आयेगी और तब स्वतंत्र पत्रकारिता का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। तब सरकार से प्रश्न पूछना तो दूर की कौड़ी होगी एक आम यूट्यूबर को भी अपना चैनल पंजिकृत कराना होगा। याने हर ओर से नागरिक अधिकारों पर सरकारी पहरा कायम किया जायेगा। इसका नुकसान सभी को उठाना होगा आज यह बात हास्यप्रद लगे पर कुछ समय बाद यही होगा। इसलिए वोट मांगने वाले नेता जी से उपरोक्त मुद्दों पर और अपने स्थानीय मुद्दों पर सवाल जरूर करें।

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