प्रकृति से सीखती मंजू आर साह: उत्तराखण्ड की पिरूल वूमन
विपिन जोशी, बागेश्वर
पिरूल वूमन के नाम से प्रसिद्ध मंजू आर साह आज किसी परिचय की मौहताज नहीं है। द्वाराहाट उत्तराखण्ड की निवासी मंजू आर साह वर्तमान में ताड़ीखेत इण्टर काॅलेज में कार्यरत हैं। प्रकृति में कोई संसाधन बेकार नहीं है। सहजीविता और परस्परता का नियम प्रकृति और समस्त जीवों में लागू होता है। उत्तराखण्ड में चीड़ के जंगल बेतहाशा गति से बढ़ रहे हैं। चीड़ मुख्य रूप से फर्नीचर, जलावन और लीसा से बनने वाले उत्पादों के लिए जाना जाता है। वन विभाग को चीड़ से अच्छा राजस्व भी प्राप्त होता है। लेकिन चीड़ की पत्तियों का क्या करें ? फायर सीजन में दावाग्नि का सबसे बड़ा कारण चीड़ की पत्ती यानी पिरूल है। जंगल जलते हैं तो पिरूल पेट्रोल का काम करता है। जंगल की आग को सूखा पिरूल और बढ़ाता है। तो क्या करें इस पिरूल का ? पिरूल को रचनात्मक रूप में ढालने का काम किया मंजू आर साह ने। आपने अपनी मौसी से पिरूल आर्ट सीखा और इस कदर पिरूल आर्ट में डूब गई कि पिरूल को एक नया रूप, एक नई पहचान दे डाली।
मंजू आर साह ने बहुत आत्मविश्वास के साथ बताया कि इंसान अगर चाहे तो कुछ भी असंभव नहीं है। तमाम चुनौतियों से जूझते हुए मंजू आर साह ने पिरूल को कई प्रकार के रोचक सुन्दर आकारों में ढालने की कला सीखी और सैकड़ों अन्य महिलाओं और विद्यार्थियों को पिरूल आर्ट से रूबरू कराया। उत्तराखण्ड, झारखण्ड, छत्तीसगढ़ में महिलाओं को पिरूल आर्ट का प्रशिक्षण दिया आज बहुत सी महिलाएं पिरूल आर्ट के माध्यम से आत्मनिर्भर हुई हैं। वार्ता के दौरान मंजू जी ने कुछ महत्वपूर्ण जानकारियों से अवगत कराया। जैसे – पिरूल का उपयोग कैसे किया जाता है ? क्या-क्या उत्पाद पिरूल से बनाए जा सकते हैं ? पिरूल से किचन संबंधी बर्तन जैसे टोकरी, छपरा, पैन स्टेण्ड, वाल हैंगिग, फोटो फे्रम, विभिन्न प्रकार की ज्वैलरी, की रिंग, गुड़िया, टोपी, आदि बनाई जा सकती हैं। मंजू आगे कहती हैं कि पिरूल से क्या-क्या बनाया जा सकता है यह तो बनाने वाले की सोच और रचनात्मकता पर निर्भर करता है। आपने बताया कि शुरू में लोग कहते थे कि क्या कचरा एकत्र करती रहती हो। क्योंकी बेकार पड़ी चीजो का उपयोग करना एक चुनौती थी लेकिन जैसे ही रंग और कल्पना का एकाकार हुआ बेजान सी पड़ी चीजें जीवंत हो गई। यही मंजू आर साह की कामयाबी भी है।
उत्तराखंड और देश के अन्य राज्यों में चीड़ की पत्तियों के उत्पादों की बड़ी मांग है। चीड़ को वैश्विक स्तर पर पहुंचाने का मंजू का सपना है। मंजू कहती हैं कि महिला समूहों को वे ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनो माध्यमों से ट्रेनिंग देती हैं। गरीब वर्ग की महिलाओं के लिए फ्री में क्लासेज देने की व्यवस्था आपने बनाई है। चमोली में केदारनाथ वन्य जीव प्रभाग के तत्वाधान में लगभग 25 गांव की 150 महिलाओं को मंजू प्रशिक्षण दे चुकी हैं। पुस्तकालय गांव मनीगुह रुद्रप्रयाग में भी महिलाओं को ट्रेनिंग दी वर्ष 2023 में महिलाओं ने राखी का अच्छा बिजनेस किया और आर्थिक रूप से सक्षम हुई। सूचना और इंटरनेट का लाभ उठाते हुए छत्तीसगढ़, झारखंड की महिलाओं ने भी ऑनलाइन ट्रेनिंग ली है। सप्ताह में तीन दिन आॅन लाइन गूगल मीट के जरिए कोई भी मंजू आर साह जी की आॅन लाइन क्लास से जुड़ सकता है, लाइफ टाइम क्लासेज की फीस मात्र 1500 रू. रखी गई है, मंजू अपने सदस्यों को पूरा सहयोग करती हैं। स्वरोजगार की दृष्टि से यह एक सकारात्मक कदम कहा जा सकता है।
आपको विभिन्न पुरुस्कार भी मिल चुके हैं-वर्ष 2019 में इण्डिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल में बेस्ट अपकमिंग आर्टिशियन अवार्ड, ओहो रेडियो द्वारा मैं उत्तराखंड हूं सीरीज में साक्षात्कार। दूरदर्शन उत्तराखंड में शाबाश उत्तराखंड सीरीज में साक्षात्कार, ओहो रेडियो द्वारा राज्य स्थापना दिवस में समाज हित में किए जा रहे कार्यों के लिए सम्मान, इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल 2022 भोपाल में प्रतिभाग करने के साथ ही नमस्ते एमपी में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की पुण्यतिथि पर साक्षात्कार, चारधाम हाॅस्पिटल द्वारा उत्कृष्ट कलाकार सम्मान, नाथूराम कला विथिका रानीखेत द्वारा सम्मान।
मंजू आर साह एक आउटसोर्सिग वर्किग वूमन है तो उनकी मांग है कि विद्यालय प्रशासन और जिला प्रशासन उनको अतिरिक्त अवकाश प्रदान करें तो वे ज्यादा लोगों तक अपनी कला को पहुंचा सकती है। संस्थाओं से और महिला समूहों से मंजू आर साह को प्रशिक्षण के लिए आमंत्रित किया जाता है लेकिन समयाभाव के कारण वे जा नहीं पाती हैं। राज्य सरकार और संस्कृति विभाग को ऐसे कलाकारों पर ध्यान देना चाहिए जो आर्ट को रोजगार से जोड़ने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
