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को समझना और पहाड़ के लोक जीवन में पनपती लोक संस्कृति के साधकों को मंच उपलब्ध कराना मौजूदा दौर में कठिन कार्य है। साथ में शिक्षा में गुणवत्ता के लिए प्राथमिक स्तर के स्कूलों में बच्चों को पुस्तकालय के लिए पुस्तकें उपल्बध कराना भी एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। इन तमाम चुनौतियों को दरकिनार करते हुए दानपुर, कपकोट की रंग कर्मी और समाज सेविका मीरा आर्या युवा लोक कलाकारों को मंच दे रही हैं और बच्चों को पुस्तकालय उपल्बध करा रही हैं। इस कार्य में कुछ और साथी मीरा जी की सहायता कर रहे हैं। मीरा आर्या उत्तराखंड की लोक संस्कृति के विकास, संरक्षण और लोक कलाकारों को राष्ट्रीय स्तर के मंच दिलाने के विशेष कार्य में पिछले एक दशक से प्रयासरत हैं और अब तक बहुत से लोक कलाकारों को अच्छे मंच, रोजगार और बेहतर भविष्य दे पाने में वह सफल साबित हो पाई हैं।
मीरा एक समाजसेवी भी है, गरीब बच्चो और आर्थिक रूप से कमजोर विद्यालय के लिए विशेष रूप से पुस्तकालय मुहैया कराती हैं। मीरा जी को 2022 में स्वयंसिद्ध सृजन सम्मान भी मिल चुका है। यह किसी भी विशिष्ट महिला को दिया जाने वाला सम्मान है जो उसे उसके राज्य विशेष से चयनित कर के दिया जाता है। एक साक्षात्कार के दौरान मीरा आर्या ने बताया कि लोक संस्कृति की बात करने मात्र से संस्कृति को बढ़ावा नहीं मिलने वाला। संस्कृतिक को तो जीना होगा अपने रहन-सहन और जीवन शैली में संस्कृति को लाना होगा। इसके लिए मीरा ने स्वयं दानपुरी घाघरा पहनना शुरू किया। आपने प्राचीन वस्त्रों के प्रसार के लिए जनप्रतिनिधियों और मुख्य मंत्री को भी अपने द्वारा बनाये गए पारम्परिक वस्त्र उपहार में दिए गए। संस्कृति के साथ सामाजिक कार्यो में भी मीरा आर्या उत्साह के साथ अपनी भूमिका देती हैं। शिक्षा, संस्कृति पर मीरा आर्या के प्रयास सराहनीय हैं।
विपिन जोशी, बागेश्वर


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