किसान फिर दिल्ली दरबार में
विपिन जोशी, मेरा हद मेरा देश न्यूज़
2021 का ऐतिहासिक किसान आंदोलन याद तो होगा। अहिंसक आंदोलन के माध्यम से अपने अधिकारों की बात कर रहे किसानों की शहादत याद तो होगी। केन्द्र सरकार को किसान विरोधि रूख को तज किसानों की मांग माननी पड़ी और किसानों ने इस आधार पर आंदोलन वापस लिया। सरकार ने किसानों को रोकने के अथक प्रयास किए रास्ते बंद किए, कीलें बिछाई, सड़के खुदवाई, मीडिया के मार्फत किसानों के खिलाफ अफवाहेें फैलाई। लेकिन किसान अड़े रहे और एक स्तर की लड़ाई उन्होने जीत ली। दो साल बाद फरवरी 2024 में एक बार पुनः किसान दिल्ली दरबार की ओर कूच कर रहे हैं। मांग पुरानी है। न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों की हिट लिस्ट में है।
हजारों की संख्या में किसान रसद के साथ देश की राजधानी में प्रवेश कर रहे हैं। आखिर क्यों किसान फिर से आंदोलन की राह पर चल दिए हैं ? एक लोकतांत्रिक देश में शांतिपूर्ण तरीके से अपनी आवाज उठाना अब गुनाह की श्रेणी में आएगा ? किसानों को दिल्ली आने से ऐसे रोका जा रहा है जैसे वो दुश्मन देश की सेना हो। किसानों की आय दोगुनी करने का वादा करने वाली सरकार किसानों को अपना दुश्मन मान बैठी है. 2022 में 700 किसानों की शहादत के बाद सरकार ने काले कृषि कानूनों को वापस तो लिया लेकिन उन पर किसी तरह का सकारात्मक काम नहीं हो पाया इसलिए किसान पुनः आंदोलन की राह पर आगे बढ़े हैं। चंडीगढ़ में सरकार और किसान नेताओं की वार्ता विफल हो चुकी है। दूसरी ओर सरकार ने हरियाणा बाडर सील कर दिया है। सड़कों में कीलें बिछाई गई है, बोल्डर बिछाए जा रहें हैं। आंदोलनरत किसान नेताओं के घर नोटिस भेजे जा रहे हैं। चारो ओर से किसानों के खिलाफ घेराबंदी की जा रही है। दूसरा पहलू यह ही कि सरकार किसान नेताओं के आदर्श एम एस स्वामीनाथन और चरण सिंह को भारत रत्न से नवाज चुकी है जो सभी के लिए सम्मान की बात है लेकिन इसका स्याह पहलू यह भी है कि किसानों के हमदर्द इन नेताओं की कोई भी शिफारिश सरकार ने नहीं मानी हैं। तो फिर भारत रत्न को राजनैतिक ध्रुवीकरण के लिए उपयोग किया जा रहा है ? यह ज्वलंत सवाल है। लोक सभा चुनावों को देखते हुवे क्या केंद्र सरकार किसानों को लम्बा आंदोलन करने से रोकेगी ? क्या किसानों की मांगे मानी जाएंगी? कुछ और सवाल भी हैं जो सरकार की किसानों के प्रति मंशा जाहिर करती है।
अब क्या होगा ? क्या केंद्र सरकार तमाम मुद्दों की तरह किसान आंदोलन को भी मैनेज कर लेगी ? या इस बार किसान आंदोलन अपनी जायज मांगों को मनवा कर लोकतंत्रिक प्रक्रियाओं को मजबूत करेगा। आगामी दो माह के बाद किसान आंदोलन की भूमिका स्पष्ट हो पाएगी साथ में देश भर में केंद्र सरकार के खिलाफ अंडर करंट या समर्थन का रिजल्ट घोषित हो जायेगा।
साथ में घोषित हो जायेगा भारत का आगामी राजनैतिक चरित्र। सामान्य तौर पर देखें तो देश में कागजी तौर पर सब कुछ चंगा है का माहौल तैयार किया जा रहा है। फ्री सेवा से एक कदम आगे निकलते हुवे सरकार ने विपक्ष को निशाना बनाना शुरू किया है। झारखंड का हेमंत सोरेन कांड, बिहार का नीतीश कुमार पलटी कांड और जयंत चौधरी का एनडीए में प्रवेश अब मध्यप्रदेश में ऑपरेशन कमल नाथ।
इन तमाम राजनैतिक घटनाक्रम में जनता का एक पक्ष ऐसा है जो भारत की संविधान आधारित नीति पर भरोसा करता है। जिसे धर्म, जाति और साम्प्रदायिकता नहीं चाहिए जो चाहता है गुणवत्तापरक शिक्षा, अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था, हर हाथ को काम, धार्मिक भावनाओं का सम्मान, स्वरोज़गार का विस्तार, लोकतंत्रांतिक मूल्यों का विस्तार। लेकिन उपरोक्त बातें सरकार को नामंजूर हैं। कारपोरेट घरानों की एनजीओ जो सीधे सरकार के साथ गठबंधन में हैं, उनको भी सोशल मीडिया हो या कोई अन्य माध्यम अपने आकाओं के खिलाफ आवाज स्वीकार्य नहीं है। अर्थात् समूचा सामाजिक संवाद तंत्र कंट्रोल किया जा रहा है. शिक्षा स्वास्थ्य पर काम करने वाली एनजीओ ने सरकार की वंदना स्वीकार करते हुए मीडिया गाइड लाइंस जारी की है. समता समानता की बात करने वाली कारपोरेट संस्थाएँ सरकार के सामने नतमस्तक हैं.
वर्तमान भारत में शांतिपूर्ण अहिंसक विधि सम्मत आंदोलन के प्रति सत्ता की क्या सोच है ? सरकार परस्त मीडिया के समक्ष सोशल मीडिया को कंट्रोल करने के लिए भविष्य में केंद्र सरकार द्वारा प्रतावित ब्रॉडकास्टिंग बिल स्वतंत्र आवाजों पर प्रतिबंध की योजनाबद्ध तैयारी है। इसलिए सोचिए विचार कीजिए जितनी करुणा, प्रेम, समता हिंदू धर्म में हैं वो सभी धर्मो समान रूप से व्याप्त है। इसलिए सबको अपनी धार्मिकता, अपना विश्वास, अपनी आस्था, सभी का सम्मान करना चाहिए। लेकिन कोई किसी को नुकसान पहुंचाए तो गलत है। लोकतंत्र में कोर्ट की विधिक व्यवस्था भी है जो तय करती है न्याय। लेकिन कोर्ट से पहले अब मीडिया ट्रायल का युग है, सत्ता की दरबारी मीडिया सत्ता के इशारों पर एक धारणा जनमानस में गढ़ती है, जिसका व्यापक असर मुख्य धारा मीडिया प्लेटफॉर्म के उपभोक्ताओं पर सीधे तौर में दिखता है।
अब निश्चित तौर पर वर्तमान सत्ता कारपोरेट की मदद से, सरकारी मशीनरी की सहायता से विपक्ष के खिलाफ व्यूह रचना कर रही है, जिसके ताजा उदाहरण नीतीश कुमार बिहार, जयंत चौधरी के पाला बदलने के रूप में दिखता है। देखने वाली बात यह है कि आगामी लोकसभा चुनाव में इन तमाम मुद्दों का असर होगा या चुनावी षड्यंत्रों में जनता के मुद्दे कहीं गुम हो जायेंगे ?
विपिन, स्वतंत्र पत्रकार