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इलेक्ट्रोल बान्ड गुप्त चुनावी चंदे पर सुप्रीम कोर्ट की रोक गुप्त चंनावी चंदे को बताया असंवैधानिक। क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने –
अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि काले धन पर अंकुश लगाने के उददेश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है।
चुनावी बांड योजना सूचना के अधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी का उल्लघंन है।
राजनीतिक दलों द्वारा फंडिंग की जानकारी उजागर न करना उद्देश्य के विपरीत है।
प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशो की संविधान पीठ ने 2 नवम्बर 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मामले की सुनवाई के दौरान सीजीआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, हम सर्वसम्मत निर्णय पर पहॅुचे हैं।
राजनीतिक पार्टियों को गुप्त चुनावी चंदे का हिसाब जनता को सार्वजनिक करना होगा।
बीजेपी ने अपने चुनावी हितों की रक्षा के लिए और अकूत धन बनाने के लिए गुप्त चुनावी बांड को कानूनी जामा पहनाया और सरकारी मशीनरी का उपयोग कर 90 फीसदी गुप्त चुनावी चंदा कारपोरेट घरानों से प्राप्त किया। इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि चुनावी चंदे के रूप में अब कोई भी कारपोरेट घराना राजनीतिक दलों को तय 7.5 फीसदी चंदे की सीमा से बाहर आकर मन मर्जी से चंदा गुप्त रूप में दे सकता है। ताकी सरकार बन जाने के बाद कारपोरेट देश की आर्थिक नीतियों में अपना व्यापारिक हित साध सके। जमीनों की खरीद फरोख्त से लेकन तमाम तरह के व्यापारिक हितों का उपयोग कारपोरेट अपनी सुविधा से करते हैं सरकार से उनको संरक्षण प्राप्त होता है। यानी तुम हमें चुनावी चंदा दो हम तुमको सुरक्षा देंगे यह एक प्रकार का असंवैधानिक सौदा कारपोरेट और सरकार मध्य होता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल के बाद एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए गुप्त चुनावी चंदे की योजना को खारीज किया है। चार सप्ताह के भीरत राजनीतिक दलो को सुप्रीम कोर्ट को एक-एक पाई का हिसाब देना होगा। इससे यह भी पता चलेगा कि किस कारपोरेट घराने से बीजेपी को कितना चंदा प्राप्त हुआ ? एक आकड़े के अनुसार 2017-2018 और 2022-2023 के बीच बेचे गए 12.008 करोड़ रुपये के कुल चुनावी बांड में से, भाजपा को लगभग 55 फीसदी अर्थात 6,564 करोड़ रुपये मिले। इस बीच, कांग्रेस को पांच साल की अवधि में बेचे गए 1,135 करोड़ रुपये के सभी बांड का केवल 9.5 फीसदी प्राप्त हुआ है। नवीनतम किश्त सहित कुल मिलाकर , भारतीय स्टेट बैंक द्वारा अब तक 16518.11 करोड़ रुपये के चुनावी बांड बेचे जा चुके हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सत्ता पक्ष में मायूसी छायी है तो विपक्षी खेमों में उत्साह है। विपक्ष ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। यदि बीजेपी को अभी तक प्राप्त चुनावी चंदे को वापस करना पड़ता है तो उसके लिए यह एक भारी मुसीबत हो सकती है। लेकिन सत्ता पक्ष अपने खिलाफ आने वाले फैसलों के खिलाफ नया विधेयक पास करा कर मामले को आसानी से निपटाने मे माहिर भी है। चुनाव आयोग की कमेटी से सुप्रीम कोर्ट के दखल को हटाने का हालिया मसला इसका एक ताजा उदाहरण है। साथ में सुप्रीम कोर्ट से कुछ सवाल भी हैं – आपने 6 साल इस योजना को क्यो पनपने दिया ? क्या बीजेजी को इससे नुकसान होगा ? क्या राजनीतिक पार्टियां गुप्त रूप से लिए गये चुनावी चंदे को वापस करेंगी ? अब देखना होगा आमामी एक माह में बीजेपी गुप्त चुनावी चंदे पर अपने राज खोलेगी या फिर इस मामले को भी पलट दिया जायेगा ? बहरहाल लोक तांत्रिक प्रक्रियाओं पर भरोसा रखने वालों के लिए यह एक अच्छा फैसला तो है।
विपिन जोशी, बागेश्वर

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