10 फरवरी , कत्यूर घाटी के किसानों का विशाल प्रदर्शन तय
वन्य जीवों से बचेंगे तो किसानों की आय दोगुनी होगी
समूचे कुमाउ क्षेत्र में वन्य जीवों का आतंक बढ़ता जा रहा है। बन्दर, जंगली सुंवर, गुलदार तीन ऐसे वन्य जीव हैं जो पहाड़ की कृषि व्यवस्था और नागरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनते जा रहे हैं। लोग आंदोलनरत हैं, हालियां रामनगर आंदोलन का उदाहरण हमारे सामने है। उत्तराखण्ड की भौतिक संपदा का बेतहाशा हनन विकास की भेंट चढ़ जाता है काॅरपोरेट इसका भरपूर लाभ उठाते आये हैं। उत्तराखण्ड की बहुत सी समस्याएं हैं इन समस्याओं में वन्य जीव सुरक्षा एक प्रमुख समस्या है जिस पर सरकार ने कभी भी गंभीरता से नहीं सोचा है। वर्तमान में समूचा उत्तराखण्ड वन्य जीवों के हमले से हलकान है। गुलदार, जंगली सुंवर, बन्दर इसमें प्रमुख हैं। खेती किसानी प्रभावित होती है तो लोग अपने खेत खलिहान को छोड़कर महानगरों की ओर पलायन करते हैं। पहाड़ से बढ़ता पलायन चिंता का विषय है। इन तमाम चिंताओं में बंदरों और जंगली सुवर के आतंक से लोग परेशान है। अब समस्या फसलों को बचाने तक सीमित नहीं है। अब चिंता एक कदम और आगे की है जिसमें नागरिक सुरक्षा का सवाल मुहं बाये खड़ा है। स्कूल जाते बच्चे, घास काटती महिलाएं सब पर बन्दरों का खतरा मंडरा रहा है। अब बंदर इंसानों पर हमला करने लगे हैं। यह एक गंभीर समस्या है।
सिविल शोसाइटी गरूड़ ने गरूड़ ब्लाॅक में एक मुहिम शुरू की है, खेती बचाओ बंदर भगाओ। आज गाॅव के गाॅव इस मुहिम से जुड़ रहे हैं। बंदरों से मुक्ति कौन नहीं चाहता ? अपने खेत, बच्चों की सुरक्षा कौन नहीं चाहता ? लेकिन राजनैतिक दलों को स्थानीय समस्या सिर्फ चुनावों में याद आती है। विगत एक माॅह से क्षेत्र की जनता वन्य जीवों से सुरक्षा के लिए आंदोलनरत हैं, रामनगर, बागेश्वर सहित तमाम क्षेत्रों में जन आंदोलन जारी हैं। दूसरी ओर उत्तराखण्ड का युवा भूकानून को लेकर सड़को में है। सरकार को जनता के मुद्दों से कोई लेना देना नहीं है। सरकार तो सरकारी धन और जनता के टैक्स के धन से अपना प्रचार प्रसार करने में लीन है। जनता हलकान है तो है। हर गाॅव में कुछ पेड कार्यकर्ता हैं जो जनता का ध्यान भटकाने के लिए भरसक प्रयास रात दिन करते हैं। इनको बंदरों, सुवरांे और जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान दिखते ही नहीं। उपर से आने वाले राजनैतिक आदेशों का पालन करने वाले ऐसे ऐजेण्टों से आज देश को भारी नुकसान हो रहे हैं। लेकिन आंदोलन होते रहेंगे। यही लोकतांत्रिक देश की ताकत भी है। वन विभाग के डीएफओ और रेंजर सहित दो दर्जन से ज्यादा पंचायत प्रतिनिधियों की एक बैठक गरूड़ ब्लाॅक सभागार में संपन्न हुई उक्त बैठक में बंदरों से निजात पाने के लिए योजना बननी थी। लेकिन वन विभाग के पास सीमित संसाधन हैं और कोई ठोस योजना भी नहीं है। डीएफओ उमेश चन्द्र तिवारी ने कहा कि बंदरों को पकड़ना इतना आसान भी नहीं है। लाखों की संख्या में बंदर हैं और इनको पकड़ भी लो तो रखोगे कहां ? इसलिए बंदरवाड़े बनाना कोई स्थाई हल नहीं है। बंदरों की संख्या को नियंत्रित करना यानी बंध्याकरण करना एक मात्र तरीका है, विकल्प के रूप में किसान ऐसी फसलों को लगाए जिनको बंदर नुकसान नहीं पहुॅचाते। कुल मिलाकर यह संवाद बेनतीजा ही रहा। आगामी कार्ययोजना के रूप में 10 फरवरी 2024 को बैजनाथ नुमाइश मैदान में कत्यूर घाटी के किसानों का एक बड़ा प्रदर्शन होगा। उक्त प्रदर्शन में नई रणनीतियां बनेंगी।
विपिन जोशी, बागेश्वर