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2024 की पहली बारिश 31 जनवरी को समूचे उत्तराखण्ड में बरसी है। देश के अन्य भागों में भी झमाझम बारिश और पहाड़ियों में बर्फवारी की खबरें आ रही हैं। गेहॅू, मटर, चना, आलू की फसल के लिए यह बारिश वरदान साबित हो सकती है। विगत तीन महिनों से पहाड़, तराई सूखी ठण्ड की चपेट में था। पानी के स्रोत भी सूखने लगे थे। पश्चिमी विक्षोभ के कारण बारिश और बर्फवारी के आसार बने और आम जन सहित काश्तकारों के चेहरे खिल गये हैं। हिल स्टेशनों में पर्यटकों की भीड़ बढ़ने लगी है। पहाड़ों में बर्फवारी का आनंद लेने दूर-दूर से सैलानी पहॅुचने लगे हैं। इस उम्मीद में कि उनको बर्फवारी देखने का मौका जरूर मिलेगा। अगले दस दिनों का मौसम पूर्वानुमान कहता है कि उत्तराखण्ड की पहाड़ियों में अच्छी बर्फवारी होगी।
प्श्चिमी दिशा से चलने वाली हवाओं से मैदानी भागों में कोहरा छटेगा। बारिश की वजह से कोहरे से राहत मिलेगी। दिल्ली सहित उत्तर भारत के कई हिस्सों में बारिश ने दस्तक दी है इसका लाभ किसानों को मिलेगा। 1 फरवरी 2024 को उचाई वाले पहाड़ों में अच्छी बर्फवारी हो सकती है। मौसम चक्र में क्यों हो रहा है परिवर्तन क्या यह ग्लोबल वार्मिग का असर है ? पर्यावरणविद बताते हैं कि महानगरों में बढ़ता औद्योगिक दबाव और भारी मात्रा में जंगलों के कटान से वैश्विक ताप बढ़ा है। इसका असर वैश्विक स्तर पर देखा जा रहा है। क्या है जलवायु परिवर्तन ? और वैश्विक ताप से इसका क्या संबंध है ?
मान लीजिए धरती एक विशाल घर है वैश्विक ताप वृद्धि तब होगी जब पूरे घर का ताप बढ़ने लगे और जलवायु परिवर्तन तब होगा जब घर के सभी कमरों में अलग तरह के परिवर्तन होने लगे। इसी तरह दुनियां भर के मौसम को देखे तो अलग-अलग हिस्सों में लगभग 40 सालों में होने वाले मौसम के परिवर्तन हो जलवायु परिवर्तन कहते हैं। यह प्राकृतिक तौर पर होता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि अब आधुनिक जीवन शैली के चलते जलवायु परिवर्तन तेज गति से होगा क्योंकी वैश्विक ताप में वृद्धि होने लगी है यह एक गंभीर खतरे का संकेत भी है। 1750 की औद्योगिक क्रांति में दुनियां भर में कोयले का खूब उपयोग किया गया यहां से वैश्विक ताप का बढ़ना शुरू हुआ। 1950 के बाद दूसरे विश्व युद्ध के बाद विकास तेजी से हुआ। गाड़ियों का उपयोग बढ़ने लगा और कार्बन डाइआॅक्साइड की मात्रा बढ़ने लगी। जलवायु परिवर्तन का संकट तब से शुरू हुई। ग्रीन हाउस प्रभाव के कारण भी धरती का औसत तापमान बढ़ने लगता है। धरती का तापमान औद्यौगिक क्रांती के बाद 1.1डिग्री से0 बढ़ गया है। उत्तरी धु्रव के पास के इलाके में ज्यादा बर्फ पिघल रही है, समुद्र में पानी का जल स्तर बढ़ने लगा है। वैज्ञानिकों का दावा है कि 1880 के बाद समुद्र का जल स्तर 8 इंच बढ़ा है। विगत 25 साल में 3 इंच जल स्तर की बढ़ोतरी हुई है। आने वाले भविष्य में संमुद्र तट के शहर डूब जायेंगे और असमय बारिश, सूखे की स्थिति भी बनी रह सकती है। यानी जलवायु परिवर्तन के खतरों से इंकार नहीं किया जा सकता है।
इसका समाधान क्या होगा ? दुनियां के जागरूक देशो ने पेरिस समझौता किया है इस समझौते में सहमती बनी है कि ग्लोबल वार्मिग को 1.5 डिग्री से0 तक ही रोका जाए। यदि मानव जागरूक हो जाए और विकास के मानको में प्रकृति के अनुसार बदलाव करे तो संभव है कि दुनियां को ग्लोबल वार्मिग के गंभीर खतरों से बचाया जा सकता है।
विपिन जोशी, बागेश्वर

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