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एक ओलंपिक मेडलिस्ट ने सैक्सुअल हरासमेंट के चलते सरकार की चुप्पी से परेशान होकर खेल जगत को कहा अलविदा। महिला खिलाड़ियों से सैक्सुअल हरासमेंट के खिलाफ सांसद बज्रभूषण सिंह के खिलाफ केस अदालत में चल रहा है। सांसद भारतीय जनता पार्टी से है और सत्ता का वरद हस्त प्राप्त है। क्या इसलिए सरकार और संसद खामोश हैं ? साक्षी मलिक ने खेल जगत से सन्यास ले लिया है महिला सुरक्षा और राजनैतिक संरक्षण पर सरकार की चुप्पी आशंकित करती है। साक्षी मलिक, विनेश फोगाट सहित ऐसे हजारों महिलाएं जिनको सत्ता के प्रभाव के चलते न्याय नहीं मिल पाता है के प्रति समाज में इतनी खामोशी क्यों है ? कहां है सड़कों पर मोमबत्ती लेकर आंदोलन करने वाले कार्यकर्ता ? 39 दिन का आंदोलन इन खिलाड़ियों ने सांसद ब्रजभूषण के खिलाफ किया सुप्रीमकोर्ट के दखल के बाद दिल्ली पुलिस ने ब्रजभूषण के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज की लेकिन सांसद को गिरफतार नहीं कर पाई। सांसद आज ताल ठोक कर कहता है कि दबदबा था और दबदबा रहेगा। ये दबदबा किसके खिलाफ है ? ये दबदबा कहां से आया ? ओलंपियन महिला खिलाड़ी सुरक्षित नहीं है तो आम जन की क्या स्थिति हो सकती है इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सवालों की फेहरिस्त लंबी है आखिर क्यों सब मौन हैं ? देश की राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, महिला खिलाड़ी के सन्यास पर क्यों मौन हैं ? खेल महासंघो की आंतरिक राजनीति और दबदबा साक्षी मलिक जैसी प्रतिभावान खिलाड़ियों के लिए लगातार खतरा बन रहा है। प्रधान मंत्री मन की बात में जितनी सिद्दत से महिला सम्मान और सुरक्षा की बात करते हैं उतनी ही सिद्दत से उन्होने साक्षी मलिक के सन्यास पर क्यों बयान नहीं दिया। आरोपी सांसद के प्रति सरकार के मन में शाफ्ट कार्नर क्यों है ? न्यायालय तो न्यायिक प्रक्रिया करेगा लेकिन अदालती प्रक्रियाएं बहुत जटिल होती हैं और सत्ता के प्रभाव से फैसले प्रभावित भी होते रहे हैं। महिला खिलाड़ियों के पक्ष में दूसरे खिलाड़ी खुल कर क्यों नहीं आ रहे हैं इस पर बॉक्सर बिजेन्द्र ने कहा कि अधिकांश खिलाड़ी सरकारी नौकरी में होते हैं और वे खुलकर नहीं बोल सकते उनकी नौकरी जा सकती है। बजरंग पुनिया ने अपना पद्मश्री प्रधानमन्त्री आवास के पास रख दिया है. पुरस्कार वापसी की यह घटना खिलाडियों की ओर से विरोध है. बजरंग पूनिया ने प्रधानमंत्री को एक चिट्ठी भी लिखी है.
वर्तमान में तो किसी भी संस्था में सरकार की नीतियों के खिलाफ बोलना बैन है। मीडिया कंपनियों ने बहुत से बेबाक पत्रकारों को नौकरी से निकाला है और कई गैर सरकारी संस्थानों ने अपने कार्यकर्ताओं को शोषल मीडिया में लिखने और सरकार की गलत नीतियों पर प्रश्न करने की एवज में निकाला है। देश में यदि ब्रजभूषण शरण सिंह जैसे बाहुबली नेताओं का दबदबा जारी रहा और सत्तासीन दल अपने चहेतों को बचाती रहेगा तो शुसाशन कहां से आयेगा ? क्या शुसाशन सिर्फ रेडिया, टेलीविजन, कहानियों, विज्ञापनों के लिए लागू होता है ? शुसाशन को तो धरातल पर लागू होना होता है। लेकिन ऐसा होता दिखता नहीं है। साक्षी मलिक का कुश्ती जगत से सन्यास दुखःद तो है समाज के जागरूक वर्ग के लिए यह राष्ट्रीय शर्म की बात भी है।
विपिन जोशी/मेरा हक देश न्यूज, बागेश्वर, उत्तराखण्ड

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