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पूस में धधक रहे हैं जंगल


21 दिसंबर, 2023 /विपिन जोशी, मेरा हक मेरा देश न्यूज
पूस का महीना चल रहा है। समूचा पहाड ठण्ड की चपेट में है। ऐसे में बागेश्वर जनपद के हरे-भरे वनों में दावाग्नि की सूचनाएं चिंता जनक हैं। आम तौर पर वन विभाग की ओर से मई, जून माह में फायर सीजन घोषित किया जाता है लेकिन इस बार तो दिसंबर में ही जंगलों में आग लगनी शुरू हो गई है। गड़खेत रेंज के पास अकुड़ाई गॉव में दिनांक 21 दिंसबर को दोपहर 2 बजे अचानक आग की लपटें उठती देखी गई। मौके पर पहॅुुच कर देखा तो आग की चपेट में जंगल का 800 मीटर क्षेत्र आ चुका था। चीड़ आच्छादित इस जंगल के पास ही बस्ती भी है ठण्ड के मौसम में जब जंगल में पाइन नीडल पीरूल नहीं गिरती है तो आग लगने व फैलने की संभावनाएं भी कम होती हैं। किसने सुलगाई होगी ये आग इसका पता नहीं लग पाया लेकिन आग में कई सारे पेड़ जल गए। लाखों की वन संपदा मिनटों में स्वाहा हो गई। ग्रामीण अपने अंदाजे से कहते हैं अराजक तत्वों ने आग लगाई होगी। लेकिन इस बात का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल पाता हैं। कुछ मानते हैं कि बरसात के बाद जंगल में घास अच्छी उगेगी इसलिए भी जंगलों को आग के हवाले कर दिया जाता है। लेकिन जंगल की आग में सिर्फ पेड़-पौधे नहीं चलते हैं, इस आग में अक्सर बहुत से सूक्ष्य जीव भी जल जाते हैं। पक्षियों के घोसलें जलते हैं, जंगली जानवर अपनी जान बचाने बस्ती की ओर रूख करते हैं। पिछले दस साल के तथ्यों का विश्लेषण करें तो पाएंगे कि जंगल की आग से परेशान वन्य जीवों ने मानव बस्तियों में ज्यादा आक्रमण किये हैं।
अकुड़ाई गॉव से लगते क्षेत्र का यह घना जंगल मूलतः चीड़ आच्छादित हैं परन्तु वन विभाग की पहल से उक्त रेंज के आसपास मिश्रित प्रजाती के वृक्षो का रोपण किया है। देवनाई, बलिबूबू और वज्यूला क्षेत्र में बांज, उतीश, चंदन, शीशम भी लगाया गया है। वन विभाग गरूड़ रेंजर हरीश खर्कवाल से हुई बातचीत में आपने जानकारी देते हुए बताया कि चंदन और अन्य कीमती वृक्षों का रोपण भविष्य में वृक्ष खेती के लिए वरदान साबित हो सकता है। पर्यावरण संरक्षण और वृक्ष खेती पर काम कर रहे जगदीश कुनियाल ने तो अपनी जमीन में 50 हजार पेड़ लगाए हैं और दो पानी के स्रोत उस क्षेत्र में रिचार्ज हुए हैं। ऐसे ही एक और पर्यावरण प्रेमी हैं बागेश्वर के किशन सिंह मलड़ा इनको वृक्ष मित्र की उपाधी भी मिली है, आपने भी वृक्षा रोपण और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किया है। यदि इसी तरह दिसंबर में जंगल धधकते रहे तो फायर सीजन आने तक क्या स्थिति होगी कल्पना की जा सकती है।
जल जंगल और जमीन का अटूट रिश्ता है यदि वक्त रहते हिमालयी क्षेत्रों में इस रिश्ते की तपिश को महसूस नहीं किया गया तो भविष्य में पर्यावरणीय संकटो से बचना असंभव हो जायेगा। जंगल जलते रहेंगे तो पानी के स्रोत्र कैसे पुनर्जीवित होंगे ? नदियों पर संकट गहरायेगा जिसका असर खेती किसानी पर सीधा पड़ेगा। अतः वनों को जलने से और पहाड़ को दरकने से रोकने का एक सरल उपाय है कि सभी पर्यावरण के महत्व को समझे और जिम्मेदारी पूर्वक अपना नागरिक कर्तव्य निभाएं। सिर्फ सरकार और जिम्मेदार विभाग के भरोसे बदलाव की उम्मीद किसी छेद वाले घड़े में पानी भरने जैसा होगा।

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