सवाल प्रतिबंधित हैं : 92 सांसद निलंबित
देश की नई चमचमाती संसद जिसमें धर्मदण्ड की स्थापना की गई धूमधाम से संसद भवन का उद्घाटन किया गया। प्रगति का मंदिर संसद को कहा गया। इसी नई संसद की सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगाई जाती है। कुछ बेरोजगार युवा संसद में कलर बम लेकर घुस जाते हैं। बाकायदा पास के साथ। कौन देता है इनको अनुमति ? किसने बनाये पास ? युवाओं के मन में सरकार के खिलाफ व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश क्यों पनप रहा है यदि सब ओर खुशहाली ही है। सवाल बहुत से हैं लेकिन इन सवालों की भीड़ में भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काला दिन और जुड़ गया। आपातकाल के बाद दिसंबर 2023 में दुबारा एक साथ एक ही दिन में 78 सांसदों को शीत कालीन सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया है। कुल 64 सांसदों को पूर्णतह सत्र के लिए निलंबित किया गया है। विगत एक सप्ताह में कुल 92 सांसदों को निलंबित किया जा चुका है। आरोप है संसद की कार्यवाही में दखल देना, हंगामा मचाना। यह सोचनीय तथ्य है कि यदि विपक्ष संसद की सुरक्षा चूक पर सवाल उठाता है तो क्या गुनाह करता है ? सरकार से संसद में सवाल जवाब कौन करेगा ? आप और हम तो संसद की कार्यवाही को मीडिया के माध्यम देख सुन सकते हैं लेकिन जनता के चुने हुए प्रतिनिधि ही संसद में बैठकर देश की दिशा ओर दशा को तय करते हैं। तो क्यों नहंी देश के गृहमंत्री को संसद में आकर विपक्ष के सवालों पर प्रतिक्रिया देनी चाहिए यही तो कह रहा है विपक्ष। लेकिन सदन के सर्वेसर्वा सभापति जी को भी विपक्ष का हंगामा पसंद नहीं है। या वो कहना चाहते हैं कि हंगामा है क्यो बरपा संसद में हुआ हमला, बम तो नहीं फूटा गोली तो नहीं चली। यानी किसी बड़े काण्ड के बाद सरकार जागेगी और संसद में आकर सवालों का सामना करेगी। एक नागरिक के तौर पर किसी के भी मन में यह सवाल आ सकता है कि प्रधानमंत्री जी और गृहमंत्री जी टीवी शो में जवाब दे सकते हैं तो अपनी बनाई नई संसद में क्यों नहीं सामना करते सवालों का। शायद टीवी पर बोलना मंच पर बोलना एक तरफा होता है वहां दर्शकदीर्घा सवाल नहीं करती पत्रकार तो आपने पहले ही मैनेज कर लिए तो सवाल करे कौन ? संसद में विपक्ष है सवाल करने के लिए इसलिए सांसदों को ही निलंबित कर दो। ना होगा नौ मन तेल ना राधा नाचेगी। तो फिर संसद को क्यों संचालित करना जब सारी नितियों पर स्टूडियों में और मंचों पर ही बात हो रही है तो हजारों करोड़ क्यों उड़ा दिये नई संसद पर। 33 सासंद लोक सभा से और 45 राज्य सभा के शामिल हैं।
संसद में हमला करने वाले दोनों युवक जेल में हैं। इनके खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज हुआ है कुल छह युवाओं को गिरफतार कर लिया गया है। आरोपियों का कहना है कि वे मंहगाई और बेरोजगारी जैसे बड़े मुद्दों को देश के सामने लाना चाहते थे इसलिए उन्होने विरोध का ये रास्ता चुना। जाॅच पड़ताल के बाद सारी स्थिति स्पष्ट हो पायेगी। लेकिन सरकार के लिए एक प्रश्न तो मुुंह बाये खड़ा है कि देश में सब कुछ चंगा नहीं चल रहा है। मुफ्त की रेवड़ियों से बेरोजगारी और मंहगाई की समस्या को खत्म नहीं किया जा सकता। स्थाई और टिकाउ विकास के लिए तो कुछ और सोचना होगा जो शायद सरकार के ऐजेण्डे में होगा, ऐसी उम्मीद करनी चाहिए।
इतनी बड़ी संख्या में निलंबन किया गया है 1970 के दशक के बाद यह पहला अवसर है। क्या सरकार बिना विपक्ष के संसद की कार्यवाही चलाना चाहती है ? 2023 में ऐसा होना दुर्भाग्यपूर्ण है। लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में सवाल जवाब तो होंगे ही संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में संसद में हंगामा आम बात है। लेकिन सवाल जवाब करने वालों को सत्र से ही निकाल देना ठीक नहीं है। इस पूरे खेल में सरकार की मंशा क्या है ? क्योंकी यह अंतिम सत्र होगा इसके बाद 2024 मई में लोक सभा चुनाव होने हैं। आजादी के आंदोलन के दौरान भगत सिंह ने संसद में बम फोड़ा था उसी घटना से प्रेरित होकर इन युवाओं ने संसद में हंगामा किया। खबरों से स्पष्ट हो गया है कि हमलावर युवाओं को बीजेपी के एक सांसद ने ही पास बनाकर दिये। इसलिए गृहमंत्री ओर प्रधानमंत्री जी को संसद में आकर जवाब देना चाहिए। क्या सरकार सवालों और उसके बाद आने वाले नैतिक संकट से बचने के लिए ऐसा कर रही है। संसद में आकर जवाब देने से बच रही है ? सांसदों का विशेषाधिकार है कि उनको जानकारी मिले सवालों के जवाब मिले। आखिर वे जनता के वोट से चुने हुए नुमाइंदे हैं। जनता के मुद्दों को पटल पर रखते हैं। इसलिए लोकतांत्रिक प्रणाली में विपक्ष का होना और एक संसद के भीरत एक स्वस्थ्य संवाद का होना जरूरी है।
विपिन जोशी/मेरा हक मेरा देश न्यूज, उत्तराखण्ड, बागेश्वर