संगीत संगत केन्द्र: यशोदा का सपना
सोमेश्वर से दो किमी दूर खाड़ी गाॅव की निवासी है यशोदा रौतेला। यशोदा ने ऐशिया की मशहूर प्रयाग संगीत समिती से शास्त्रीय संगीत गायन और वादन की विधिपूर्ण शिक्षा ग्रहण की और सामाजिक मूल्यों व शिक्षा पर कार्यरत एक संस्था एसएनसी गुप्ताकाशी के साथ कुछ साल कार्यकर्ता की हैसियत से कार्य किया। संगीत यशोदा का जुनून है, संगीत के लिए यशोदा के अपने समपर्ण हैं। बातचीत के दौरान यशोदा ने बताया कि आज उनके दो संगीत संगत केन्द्र उत्तराखण्ड में संचालित हैं। मजखाली और सोमेश्वर में। करीब 35 विद्यार्थी दोनांे केन्द्रों में शास्त्रीय संगीत का प्रशिक्षण ले रहे हैं। संगीत संगत केन्द्र में 3 साल से 45 साल वर्ग के विद्यार्थी संगीत सीखने आते हैं। इनमें बच्चे, युवा और सरकारी स्कूलों के शिक्षक शामिल हैं। पहाड़ी क्षेत्रों में संगीत की परंपरा काफी प्राचीन रही है। यहां संगीत परम्परागत तरीके से आगे बढ़ता रहा है। जैसे पारंपरिक रामलीला मंचन, बैठकी होली, कृषि परंपरा के गीत, मेलों में गाये जाने वाले झोड़े, भगनोल, जागर विधा आदि। आम जीवन में संगीत को लोक संगीत और गायन के साथ भजन मंडली के रूप में देखा व सराहा जाता रहा है। लेकिन यशोदा ने संगीत को साधना और आजीविका से जोड़ने के प्रयास किए हैं जो नई पहाड़ के संदर्भ में नई बात है। विधिवत रूप से संगीत को सिखाने का साहस और प्रयास काबिले तारीफ भी है।
यशोदा सभी प्रकार के वाद्य यंत्रों के वादन की तालीम देती है जिनमें शामिल हैं – हारमोनियम, तबला, बाशुरी, गिटार, ढोलक, की बोर्ड आदि। इसके साथ गायन विधा से भी विद्यार्थियों को रूबरू कराती हैं। यशोदा ने बताया संगीत संगत केन्द्र में अभी तक उन्होने दो लाख का बजट खर्च किया है बदले में फिलहाल केन्द्रों से धनार्जन कम ही हो रहा है। लेकिन नया काम है, गाॅवों में शास्त्रीय संगीत के प्रति लोगों की रूचि जगाना और उनको जोड़ना एक बड़ी चुनौती है। चर्चा के साथ-साथ यशोदा ने अपने कम्पोज किए कुछ गीत भी सुनाये और सभी उपलब्ध वाद्य यंत्रों को बजा कर प्रस्तुति भी दी। यशोदा ने एक महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए अपने मन के उद्गार कुछ यूं व्यक्त किए।
आने वाला युग आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का है तब मानसिक तनाव से मुक्ति के लिए शास्त्रीय संगीत एक माध्यम बन सकता है। संगीत का कितना ही डिजिटलीकरण हो जाये पर उसका मर्म तो लोक संगीत और शास्त्रीय संगीत में ही जिंदा रहेगा। इसलिए संगीत हर युग में प्रासंगिक रहने वाला है। थोड़ा सा आध्यात्म और प्रकृतिवाद को छूते हुए यशोदा ने संगीत को मुक्ति और साधना का विषय भी माना, बताया कि बचपन में उन्होने पढ़ा और सुना था कि पेड़ पौधे भी संगीत सुन सकते हैं और कहा कि संगीत देवत्व और कृपा का विषय भी है। गुरू शिष्य परंपरा से संगीत की शिक्षा लेने के बाद समाज की तमाम चुनौतियों को स्वीकार करती और उनके लड़ती भिड़ती यशोदा आज अपनी एक अलग रचनात्मक पहचान समूचे उत्तराखण्ड में बना रही है। आहिस्ता आहिस्ता ही सही लेकिन लोगों का ध्यान यशोदा के संगीत संगत केन्द्र की ओर जा रहा है।
कहते हैं किसी भी नये कार्य को स्थापित करने में घर परिवार और मित्रों का सहयोग एक मजबूत आधार बनता है। यशोदा को घर और मित्रों से अच्छा सहयोग मिला इसी सहयोग और सबलता ने संगीत केन्द्र की लौ को जलाए रखा। युवतियों के लिए एक शैक्षणिक केन्द्र का संचालन कर रही गाॅधीदर्शन से प्रभावित अर्चना बहुगुणा यशोदा के लिए प्रेरणा सा्रेत बनी और उनकी संस्था एसएनसी ने समय-समय पर यशोदा को मदद भी की। यशोदा के सामाजिक शिक्षण का एक बड़ा हिस्सा एसएनसी केन्द्र में बीता है जसकी झलक आज उनके काम में दिखती है। एक ओर जबरदस्त बेरोजगारी का दौर है, पहाड से पलायन बढ़ रहा है, खेती किसानी आधारित पहाड़ का जन जीवन जंगली जानवरों की भेंट चढ़ रहा है ऐसे में यशोदा ने संगीत को अपनी आजीविका का आधार बनाया है। इसमें चुनौतियां और रिस्क दोनों मौजूद हैं। इस आशंका का जवाब यशोदा ने बड़े ही आत्म विश्वास के साथ दिया, कहा कि पहाड़ में रिवर्स माइग्रेसन की शुरूआत हो चुकी है लोग अब महानगरों से वापस पहाड़ का रूख कर रहे हैं। इसकी गति धीमी जरूर है पर स्वरोजगार और कुछ नया करने की प्रेरणा तो बनी रहती है।
विपिन जोशी/मेरा हक मेरा देश न्यूज/बागेश्वर-उत्तराखण्ड
