गुलदार के आतंक से खौफज़दा हैं ग्रामीण
बागेश्वर जनपद के सुदूरवर्ती क्षेत्र सालमगढ़ में इन दिनों गुलदार और जंगली सुवरों के आतंक से ग्रामीण खौफज़दा हैं। सालमगढ़ क्षेत्र गढ़खेत वन रेंज के अंतर्गत आता है। गरूड़ विकास खण्ड मुख्यालय से करीब 25 किमी. की दूरी पर स्थित है। अब सड़क मार्ग से जुड़ा है लेकिन सड़क की स्थिति बेहद खराब है। गाॅव के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि है। इण्टरमीडिएट की शिक्षा लेने के लिए बच्चों को जीआईसी वज्यूला आना पड़ता है जो गाॅव से करीब 15 किमी. की दूरी पर स्थित है। पैदल मार्ग उस पर दिन दहाड़े गाहे बगाहे दिख जाता है गुलदार ऐसे में स्कूली बच्चों और राहगिरों के लिए मुश्किलें आये दिन सामने खड़ी रहती हैं। एक ओर पहाड़ का संघर्षशील जीवन और दूसरी ओर वन्य जीवों से जान का खतरा बना रहता है। विगत तीन वर्ष पूर्व सालमगढ़ के पास ही हरीनगरी क्षेत्र की दुखद गुलदार अटैक को कौन भूल सकता है एक ही परिवार के दो मासूम बच्चों को गुलदार ने निवाला बनाया था। दो सप्ताह पूर्व सालमगढ़ के पास एक युवती को स्कूटी में जाते हुए गुलदार ने चोटिल किया। स्कूली बच्चों को आते-जाते गुलदार दर्शन हो जाते हैं। अब ग्रामीण काश्तकारों ने वन विभाग से गुहार लगाई है कि उनके क्षेत्र में गश्त बढ़ाई जाए और पिंजरे लगाये जाए।
उक्त मामले को संज्ञान में लेते हुए हमने गढ़खेत रेंज के वन क्षेत्र अधिकारी खर्कवाल जी से बात की आपने जानकारी देते हुए बताया कि ग्रामिणों की समस्याओं और उनकी शिकायतों को विभाग संज्ञान में रहा है और ग्राम सभा स्तर पर लोगों को गुलदार से बचने के तरीके भी बताये जा रहे हैं यह एक प्रकार का जागरूकता कार्यक्रम है। साथ ही संवेदनशील स्थानों को चिन्हित कर पिंजरा लगाने और कैमरा इंस्टाल कर अवलोकन करने की योजना पर भी कार्य जारी है। गौरतलब है कि ग्वालदम के पास ऐरीझाला गाॅव के पास एक गधेरे में वन विभाग ने एक महीने पूर्व निगरानी कैमरा इंस्टाल किया था। एक गुलदार की हरकत उस कैमरे में रिकार्ड भी हुई।
गुलदारों की संख्या में वृद्धि क्यों हुई होगी ? उक्त सवाल पर अपने अनुभव साझा करते हुए वन क्षेत्र अधिकारी ने बताया कि पिछले कुछ सालों में जंगल का मिजाज बदला है। पहाड़ में सियारों की संख्या कम हुई है सियार गुलदार के शावकों को आसानी अपना शिकार बना लेता था और गुलदारों की संख्या नियंत्रित रहती थी। सियारों को मार कर खाने वाला एक वर्ग था जिन्होने पहाड़ के सियारों का खूब शिकार किया इसलिए उनकी संख्या कम होती चली गई। हर साल गर्मियों में जंगलों के जलने से भी जानवरों ने मानव बस्ती की ओर आना शुरू किया यह भी एक कारण है कि अब भोजन की तलाश में गुलदार मानव बस्तियों की ओेर आसान शिकार की तलाश में आ जाते हैं। प्रकृति में संतुलन और नागरिक जागरूकता तथा वन विभाग की सक्रियता और सरकार की कुशल नीतियों के सामंजस्य से ही पहाड़ में जंगली जानवरों के आतंक से छुटकारा मिल सकता है। वर्ना भविष्य में स्थितियां बेहद गंभीर हो सकती हैं।
विपिन जोशी/मेरा हक मेरा देश न्यूज/बागेश्वर/उत्तराखण्ड
