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बागेश्वर नगर पालिका परिषद के 2025 के चुनाव में इस बार मुकाबला बेहद रोमांचक और अप्रत्याशित नजर आ रहा है। इस चुनाव में त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति बन गई है। अध्यक्ष पद के लिए तीन प्रमुख उम्मीदवार मैदान में हैं। भारतीय जनता पार्टी की ओर से सुरेश खेतवाल, कांग्रेस से गीता रावल और निर्दलीय प्रत्याशी कवि जोशी अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं। सभी उम्मीदवारों ने जनता का समर्थन हासिल करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

सुरेश खेतवाल पर जनता की मिली-जुली राय
सुरेश खेतवाल भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार हैं और उनके पिछले कार्यकाल को लेकर जनता की राय बंटी हुई है। जहां एक ओर उनके समर्थक उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कत्यूर बाजार से पुल न खुलने के कारण हो रहे आर्थिक नुकसान को लेकर उनकी आलोचना भी की जा रही है। कई व्यापारी और स्थानीय लोग इस समस्या के समाधान में प्रशासन और सरकार की विफलता से नाराज हैं। इसके बावजूद, भाजपा समर्थकों का मानना है कि सुरेश खेतवाल के पास अनुभव है और वह बागेश्वर के विकास के लिए एक मजबूत विकल्प हो सकते हैं।

गीता रावल की दावेदारी और कांग्रेस में नाराजगी
कांग्रेस की उम्मीदवार गीता रावल ने इस चुनाव में जोरदार दावेदारी पेश की है। उनके समर्थक उनके पिछले कार्यकाल की तारीफ करते नहीं थक रहे। हालांकि, कांग्रेस के भीतर एक गुट ऐसा भी है जो गीता रावल को टिकट देने के फैसले से नाराज है। यह नाराजगी तब पैदा हुई जब पार्टी ने पहले निर्दलीय प्रत्याशी कवि जोशी को टिकट दिया और बाद में उन्हें टिकट वापस लेकर गीता रावल को प्रत्याशी बनाया। इस फैसले से कांग्रेस कार्यकर्ताओं और कवि जोशी के समर्थकों में असंतोष है।

कवि जोशी: निर्दलीय लेकिन मजबूत प्रत्याशी
कवि जोशी ने इस बार निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी उम्मीदवारी पेश की है। वह स्थानीय जनता के बीच एक अलग पहचान बना चुके हैं। कुछ लोग उन्हें “अपना नेता” मानते हैं और उनके प्रति खासा विश्वास रखते हैं। कांग्रेस से टिकट वापस लेने के बाद कवि जोशी ने चुनाव लड़ने का फैसला लिया, जिससे उनकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। हालांकि, निर्दलीय होने के कारण उनके लिए यह चुनाव चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
जनता की खामोशी: प्रत्याशियों के लिए बड़ी चुनौती
तीनों उम्मीदवारों ने अपने-अपने स्तर पर प्रचार अभियान तेज कर दिया है, लेकिन सबसे दिलचस्प पहलू यह है कि जनता अब तक खामोश है। मतदाताओं का रुझान स्पष्ट नहीं है, जिससे प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ गई हैं। स्थानीय मुद्दे, जैसे कत्यूर बाजार से पुल का निर्माण, रोजगार और आधारभूत विकास इस चुनाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं।

चुनाव परिणाम के प्रति उत्सुकता
इस त्रिकोणीय मुकाबले में कौन विजयी होगा, यह कहना फिलहाल मुश्किल है। जनता की खामोशी ने चुनाव परिणाम को और भी अप्रत्याशित बना दिया है। हर प्रत्याशी के लिए यह चुनाव न केवल अपनी लोकप्रियता साबित करने का मौका है, बल्कि जनता के विश्वास को जीतने की चुनौती भी है।
बागेश्वर में इस बार का चुनाव न सिर्फ रोमांचक होगा बल्कि यह साबित करेगा कि जनता किसे अपना नेता चुनती है।

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