अवैध खनन से ऐतिहासिक सत्य नारायण मंदिर को खतरा : विपिन जोशी
बैजनाथ धाम से लगा हुआ गाॅव है तैलीहाट। सातवीं सदी में कत्यूरों ने इसी गाॅव के नीला चैरी नामक स्थान में अपनी राजधानी बनाई थी जिसके अवशेष आज तक गाॅव में मौजूद हैं इसके साथ ही कत्यूरी काल के तीन विशाल मंदिर और सात पानी के नौले गाॅव में मौजूद हैं जो शिल्प और ऐतिहासिक गाथा को बयां करने के लिए काफी हैं। तैलीहाट गाॅव के सामने गोमती नदी है जो कत्यूर घाटी की कृषि के लिए जीवन रेखा है। गोमती नदी के किनारे प्राचीन सत्यनारायण मंदिर स्थित है साथ में खेती की जमीन सेरे के रूप में स्थित है जो ग्रामीणों के लिए आजीविका का मुख्य स्रोत है। लेकिन अब खेती की जमीन और प्राचीन सत्य नारायण मंदिर के अस्तित्व पर खतरा मंडराने लगा है। क्या भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग इस गंभीर मुद्दे पर कुछ कार्यवाही करेगा ?
गोमती नदी में बारोमास अवैध खनन जारी रहता है। नेपाली मूल के श्रमिक खेती की जमीन के समीप ही खनन करते हैं और अपनी रोजी रोटी कमाते हैं। खेतो के नीचे बड़े-बड़े गढ्डे बन गये हैं और रीवर बैड का स्तर भी प्रभावित हुआ है। ऐसे में बरसात में यदि नदी का जल स्तर बढ़ता है तो नदी किनारे की खेती वाली जमीन को नुकसान होगा जिससे ग्रामीण सीधे प्रभावित होंगे। लेकिन इस गंभीर समस्या के प्रति जिम्मेदार विभाग आंखे मंूदे बैठा है। सरकार को राजस्व चाहिए इसलिए लीगल टैंडर भी आंख बंद करके गोमती में डाल दिये जाते हैं लीगल टैंडर की आड़ में नेपाली श्रमिकों की मौज हो जाती है और वे कहीं से भी खनन करना शुरू कर देते हैं। सुबह सवेरे ही गोमती के किनारे दर्जनों की संख्या में नेपाली श्रमिक अपने परिवार के साथ रेता निकालने व ढोने के काम में जुट जाते हैं। ग्रामीण कभी समझाते हैं तो कभी इन श्रमिकों की गरीबी पर तरस खाकर चुप हो जाते हैं लेकिन असल सवाल तो इन्हीं ग्रामीणों की जमीनों का है जो सभी के लिए कृषि आजीविका का मुख्य साधन है।
गोमती नदी में अवैध खनन पर तुरंत रोक लगनी चाहिए। प्रशासन चाहे तो एक दिन में आदेश लागू कर व्यवस्था बना सकता है। प्रशासन को उक्त क्षेत्र का एक अवलोकन कर मामले को अपने स्तर से देखना चाहिए। लेकिन ऐसा होगा कब ? जब खेत बह जायेंगे तब यदि प्रशासन और जनता जागेगी तो क्या फायदा ? क्षेत्र के नागरिक संगठनों और गांव के जागरूक ग्रामिणों को भी उक्त मुद्दे की गंभीरता को समझते हुए नेपाली श्रमिकों के द्वारा किये जा रहे खनन के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। मैंने व्यक्तिग तौर पर कुछ मीडिया के साथियों को भी उक्त मामले की जानकारी दी है लेकिन खनन के खिलाफ लिखने और खबर चलाने के लिए और प्रशासन से सवाल पूछने की हिमाकत कौन करें ? अभी तो मीडिया के लिए साॅफ्ट स्टोरी करने का दौर है। यानी आराम करो और सत्ता सुख के लुत्फ लो। यदि तमाम मीडिया भी प्रशासन की तरह आंखें मूद बैठी रहेगी तो जनता की आवाज कौन आगे ले जायेगा ? मजबूर होकर जनता अपनी आवाज शोसल मीडिया प्लेट फाॅर्म पर डालेगी कभी-कभी इस प्लेट फाॅर्म की बातें जल्दी वायरल हो भी जाती हैं लेकिन आजकल रील बनाने वालों की भीड़ है तो ज्वलंत गंभीर मुद्दों को देखने की फुर्सत भी कम ही लोगों को मिलती है। रील के ठुमकों से बाहर आइये और वास्तविक मुद्दों पर अपनी नजर गढ़ाइये क्योंकी अब खुद अपनी आवाज को जन-जन तक ले जाने के तरीके सोचने होंगे।
@भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग /जिला प्रशासन /नागरिक संगठन/जन प्रतिनिधियों समेत समस्त ग्रामीणों से विनम्र निवेदन है कि इस खबर को जितना हो सके आगे भेजने का कष्ट करें। हो सकता है एक दिन इस खबर का असर हो जाए।

पहले सरकार को एक पक्का नियम बनाना चाहिए तभी जनता भी उस नियम का पालन करेगी वैसे भी आजकल लोग बस खबर सुनते हैं और भूल जाते हैं जब एक आवाज उठायेगा तभी पीछे सारी जनता आयेगी ये सिर्फ एक इंसान का काम नहीं बल्कि जिस प्रकार भारत सबका एक है भारत माँ सबकी एक है तो उसी प्रकार हर इंसान को एक दूजे का होना पढ़ेगा हर किसी की समस्या सबकी समस्या हो सबकी l सोच होगी तो 100 उठेंगे और फिर 100 लोगों से 200/300 लाखों की जनसंख्या सरकार की आँखों को खोलेगी यही मेरा मानना है।
और आखरी बात यही कहूंगी की
हम रहते हैं उस मातृभूमि में
जहाँ भारत माँ का नाम चला
सन्तों की भूमि है ये
यहाँ कण कण में है भगवान बसा….
प्रणाम
Raveena Rawat ✍️
VERY GOOD