उत्तरायणी मेला 2025: पारंपरिक संस्कृति और उल्लास का संगम स्थान
Bhagwat Negi Mhmd News Garur
बागेश्वर, दिनांक: 13 जनवरी 2025
बागेश्वर जिले में उत्तरायणी मेले का शुभारंभ इस वर्ष भी पारंपरिक और भव्य आयोजन के साथ हुआ। कुमाऊँ की कांशी के नाम से प्रसिद्ध इस ऐतिहासिक, धार्मिक और पौराणिक मेले का उद्घाटन कुमाऊँ मंडल के आयुक्त दीपक रावत ने फीता काटकर किया। बाबा बागनाथ मंदिर के पास सरयू और गोमती नदी के तट पर हर साल आयोजित होने वाला यह मेला कुली बेगार आंदोलन की स्मृति को संजोए हुए है।झांकी और प्रभात फेरी ने बढ़ाया मेले का आकर्षणउद्घाटन से पहले स्थानीय स्कूली बच्चों और नागरिकों ने पारंपरिक वेशभूषा में प्रभात फेरी और झांकी निकाली। यह झांकी बागेश्वर नगर के विभिन्न हिस्सों से होते हुए तहसील परिसर से नुमाईश मैदान तक पहुंची। इसमें स्थानीय कलाकारों और बच्चों ने न केवल कुमाऊँ की पारंपरिक संस्कृति को दर्शाया, बल्कि भारत के अन्य राज्यों की सांस्कृतिक विविधताओं की झलक भी पेश की। आर्मी बैंड ने देशभक्ति के गानों के जरिए मेले में एक नया जोश भर दिया।कला, संस्कृति और परंपरा का संगममेले की शुरुआत में बागेश्वर की स्थानीय संस्कृति का प्रदर्शन किया गया, जिसमें पारंपरिक वेशभूषा, लोक नृत्य और गीत प्रमुख आकर्षण रहे।
झांकी में कलाकारों ने जहां कुमाऊँ के सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत किया, वहीं अन्य राज्यों की संस्कृति भी देखने को मिली। यह झांकी दर्शकों के लिए सांस्कृतिक एकता का संदेश लेकर आई।आयुक्त दीपक रावत ने दिया संदेशकुमाऊँ मंडल के आयुक्त दीपक रावत ने मेले का उद्घाटन करते हुए मेले में आए सभी लोगों से स्थानीय हैंडीक्राफ्ट और उत्पादों को बढ़ावा देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि ऐसे आयोजनों से न केवल हमारी संस्कृति को बढ़ावा मिलता है, बल्कि स्थानीय कलाकारों और कारीगरों को भी अपनी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिलता है।प्रशासन की सराहनीय तैयारी रही उत्तरायणी मेले की भव्यता और आयोजन की सफलता के पीछे प्रशासनिक व्यवस्था का बड़ा योगदान है।
जिलाधिकारी बागेश्वर विनीत कुमार और कपकोट विधायक सुरेश सिंह गढ़िया ने मेले की सफलता के लिए अपने संदेश दिए। वरिष्ठ न्यास के अध्यक्ष दलीप सिंह खेतवाल ने भी इस अवसर पर शुभकामनाएँ दीं।कुली बेगार आंदोलन की यादें ताजा हो गईं यह मेला न केवल मनोरंजन और व्यापार का केंद्र है, बल्कि इसे ऐतिहासिक आंदोलन ‘कुली बेगार’ की स्मृति में भी आयोजित किया जाता है। यह आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था और इस मेले के माध्यम से उस संघर्ष को हर साल याद किया जाता है।स्थानीय उत्पादों और व्यापार को प्रोत्साहन मिला मेले में लगाए गए स्टॉल्स में स्थानीय कारीगरों के बनाए उत्पाद जैसे ऊनी वस्त्र, लकड़ी के सामान, जड़ी-बूटियाँ और पारंपरिक खानपान प्रमुख आकर्षण हैं। कुमाऊँ आयुक्त दीपक रावत ने मेलार्थियों से इन उत्पादों को खरीदकर स्थानीय व्यापार को प्रोत्साहन देने की अपील की।उत्तरायणी मेले में हर साल की तरह इस बार भी विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इनमें नाट्य प्रस्तुति, पारंपरिक नृत्य, लोक संगीत और अन्य कार्यक्रम शामिल हैं, जो आगंतुकों को कुमाऊँ की सांस्कृतिक विरासत से रूबरू कराते हैं।श्रद्धालुओं का धार्मिक महत्व क्यों है आइए जानते हैबाबा बागनाथ मंदिर के पास स्थित सरयू और गोमती नदी के संगम का विशेष धार्मिक महत्व है। यहां पर श्रद्धालु स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाने की कामना करते हैं। इस मेले में हर साल हजारों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से आते हैं।उत्तरायणी मेले की महत्ता क्यों है आइए जानते हैउत्तरायणी मेला न केवल एक उत्सव है, बल्कि यह कुमाऊँ की परंपराओं, संस्कृति और इतिहास का प्रतीक भी है। यह मेला स्थानीय जनता और बाहर से आए पर्यटकों को कुमाऊँ की सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर के बारे में जानने का अवसर प्रदान करता है।बागेश्वर का उत्तरायणी मेला 2025 न केवल एक सांस्कृतिक उत्सव है, बल्कि यह हमारे इतिहास, परंपरा और धार्मिकता का संगम है। प्रशासन की कुशल व्यवस्था, स्थानीय कलाकारों का उत्साह और लोगों की सहभागिता ने इसे सफल और यादगार बना दिया। यह मेला आने वाले दिनों में भी लोगों को एकजुट करता रहेगा और हमारी धरोहर को सहेजने का कार्य करेगा।