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नई दिल्ली: मणिपुर हिंसा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त तेवर अपना लिया है। हिंसा की जांच कर रही टीम को लिखित आदेश देते हुए अगले 2 महीने में जांच की रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया है। इससे पहले 7 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने जांच का जिम्मा दत्तात्रेय पडसलगिकर को दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने जांच को लेकर लिखित आदेश में कहा है कि दत्ताक्षेय पडसलगिरकर, सीबीआई और एसआईटी के कामकाज पर नजर रखने के अलावा इस बात की जांच करें कि मणिपुर घटना में कहीं वहां के पुलिस अधिकारियों की भी तो भूमिका नहीं है।

जांच कमेटी में हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस शामिल

मणिपुर हिंसा के लिए जिस जांच कमेटी का गठन किया गया है, उसमें हाई कोर्ट के 3 पूर्व जजों की नियुक्ति की गई है, जिन्हें अगले 2 महीने में अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट  में सौंपनी है। इस कमेटी में जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की पूर्व चीफ जस्टिस गीता मित्तल, बॉम्बे हाई कोर्ट की पूर्व जज जस्टिस शालिनी फंसालकर जोशी और दिल्ली हाई कोर्ट की रिटायर्ड जज आशा मेनन का नाम शामिल है। इस कमेटी की अध्यक्षता दिल्ली हाईकोर्ट की सेवानिवृत जज आशा मेनन कर रही हैं।

सीबीआई करेगी ज्यादातर मामलों की जांच

4 मई को मणिपुर में कथित रुप से 2 महिलाओं के साथ हुई अभद्रता की जांच को सीबीआई के हाथों में दे दिया गया है। वहीं इसके अलावा अन्य 11 मामलों की जांच भी सीबीआई को दे दी गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक बयान में कहा है कि प्रदेश में शांति बहाल करने में मदद करने के लिए देश के अन्य राज्यों से भी अधिकारियों को बुलाया जाएगा। वहीं सीबीआई के जांच टीम में एसपी रैंक के 5 अधिकारियों को शामिल किए जाने की योजना है। इन सभी अधिकारियों को ओडिशा, दिल्ली, झारखंड, मध्य प्रदेश और राजस्थान कैडर से लिया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट का केन्द्र को निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को कहा है कि मणिपुर हिंसा की जांच के लिए जो 42 लोगों की SIT का गठन किया गया है, इस टीम में इंस्पेक्टर रैंक के 1-1 अधिकारी केन्द्र सरकार दिल्ली, झारखंड, ओडिशा, एमपी और राजस्थान से भेजे जाए।

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